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रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 6 दिसम्बर को करेंगे भारत का दौरा, जानें क्यूँ है यह यात्रा महत्वपूर्ण।


भारत में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मेजबानी के लिए करीब-करीब सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। पुतिन 6 दिसंबर को भारत की यात्रा पर आ रहे हैं, इस दौरान कई जरूरी द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर होने की भी खबर है। रूसी राष्ट्रपति की भारत यात्रा को लेकर राजनीतिक मामलों के जानकार दोनों देशों के नेताओं के बीच होने वाले वार्षिक शिखर सम्मेलन के महत्व पर रोशनी डाल रहे हैं। आपको बतादें, पिछले साल COVID महामारी के कारण शिखर सम्मेलन को स्थगित कर दिया गया था।

जरूरी है रूस से मजबूत संबंध

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर पुष्पेश पंत के मुताबिक, पुतिन की यात्रा पिछले पांच से छह सालों की तुलना में कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है। भारत अब जो महसूस कर रहा है, वह यह है कि अमेरिका के साथ अति-निर्भरता शायद बहुत विश्वसनीय नहीं है। क्योंकि Quad के साथ जो हुआ वो भारत को दिखाता है कि अमेरिकी अचानक Quad से Aukus में स्थानांतरित हो सकता हैं। ताकी वो अफगानिस्तान को एक बार फिर से हासिल कर सके। वहीं भारत को ज्ञात है कि अगर वो रूस के साथ संबंधों को मजबूत नहीं करता है, तो रूस के संबंध धीरे-धीरे चीन के साथ मजबूत होते जाएंगे।

वहीं ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के नंदन उन्नीकृष्णन ने कहा है कि पुतिन की यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण यात्रा है। बहुत सारे ऐसे मुद्दे हैं जिन पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और पुतिन को चर्चा करनी है। उन्होंने कहा कि यात्रा को लेकर ऐसी भी अटकलें हैं कि दोनों नेता दस साल के लिए एक रक्षा समझौते के साथ-साथ कई अन्य महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर करेंगे।

गौरतलब है कि पुतिन 6 दिसंबर को भारत का दौरा करने वाले हैं। पुतिन और भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के बीच बैठक में भारत को एस-400 वायु रक्षा प्रणाली की प्रस्तुति दिखाए जाने की भी संभावना है। भारत-रूस के सैन्य संबंधों को बढ़ावा देने के लिए, दोनों देश पुतिन की यात्रा के दौरान 7.5 लाख एके -203 असॉल्ट राइफलों की आपूर्ति पर समझौता करने वाले हैं। रूस में डिजाइन की गई AK-203 को उत्तर प्रदेश के अमेठी की एक फैक्ट्री में बनाया जाएगा। भारतीय सेना द्वारा अधिग्रहित की जाने वाली 7.5 लाख राइफलों में से, पहली 70हजार में रूसी निर्मित पार्ट लगाए जाएंगे। उत्पादन शुरू होने के 32 महीने बाद इन्हें सेना को दिया जाएगा।

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