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रामबाड़ा-गरुड़चट्टी मार्ग को केंद्र ने दी हरी झंडी।


साल 2013 में आई केदारनाथ आपदा में रामबाड़ा-गरुड़चट्टी मार्ग पूरी तरह धवस्त हो गया था। इस मार्ग को दोबारा बनाने के लिए रास्ता पूरी तरह से साफ हो गया है। इस मार्ग को बनाने के लिए केंद्र सरकार ने मंजूरी दे दी है।

रामबाड़ा- गरुड़चट्टी पैदल मार्ग को केंद्र सरकार ने हरी झंडी दे दी है। वन भूमि हस्तांतरण को केंद्र सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय नेअपनी मंजूरी दे दी है। कार्यदायी संस्था लोनिवि भूमि हस्तांतरण के साथ ही मार्ग को बनाने का काम करेगी।

बता दें कि साल 2013 में केदारनाथ में आई आपदा में रामबाड़ा-गरुड़चट्टी मार्ग बह गया था। आपदा के पहले रामबाड़ा-गरुड़चट्टी मार्ग से ही पैदल यात्रा होती थी। लेकिन मार्ग के बह जाने के बाद से यहां से यात्रा सुचारू नहीं हो पाई। जिसके बाद इसका अलाइनमेंट बदलते हुए मंदाकिनी नदी के दूसरी तरफ नया मार्ग बनाया गया।

स साल जुलाई माह में दी थी सैद्धांतिक स्वीकृति
इस मार्ग के निर्माण के लिए उत्तराखंड राज्य वाइल्ड लाइफ बोर्ड और राष्ट्रीय वाइल्ड लाइफ बोर्ड भूमि हस्तांतरण के लिए पहले ही मंजूरी दे चुका है। इसके तहत रामबाड़ा से गरुड़ चट्टी तक 6.750 से 12.10 किमी तक करीब पांच किमी पैदल मार्ग निर्माण के लिए 0.983 हेक्टेयर वन भूमि लोनिवि को हस्तांतरित की जानी है।

वन विभाग के प्रस्ताव पर केंद्र ने इस साल जुलाई माह में सैद्धांतिक स्वीकृति दे दी थी। इसके बाद राज्य सरकार की ओर से सितंबर माह में संशोधित मिटिगेशन प्लान प्रस्तुत किया गया था। जिसे अब केंद्र की ओर से मंजूरी मिली है। अपर प्रमुख वन संरक्षक एवं नोडल अधिकारी रंजन मिश्रा ने इसकी पुष्टि की है।

दो से ढाई किमी घट जाएगी केदारनाथ की दूरी

इस मार्ग को इसके पुराने स्वरूप में लाने के लगातार प्रयास किए जा रहे थे। बता दें कि रामबाड़ा से गरुड़चट्टी तक पुराना पैदल मार्ग के बन जाने से केदारनाथ धाम तक की पैदल दूरी करीब दो से ढाई किलो मीटर कम हो जाएगी। साल 2017 में गरुड़ चट्टी से केदारनाथ तक पैदल मार्ग के करीब तीन किमी हिस्से का निर्माण पूरा कर लिया गया ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गरूड़ चट्टी से आध्यात्मिक नाता रहा है। राजनीति में आने से पहले 80 के दशक में मोदी ने करीब डेढ़ माह तक गरुड़ चट्टी गुफा में रहकर साधना की थी। तब वह प्रतिदिन गरुड़ चट्टी से पैदल बाबा केदार के दर्शन करने जाते थे। अपनी केदारनाथ यात्रा के दौरान उन्होंने पुराने मार्ग को संवारने का संकल्प दोहराया था।

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