वर्ष 1999 में दर्ज हत्या की कोशिश के मुकदमे में बरामद रिवाल्वर के गायब होने का मामला पुलिस के लिए एक पहेली बनकर रह गया है। उस समय बैलेस्टिक जांच के लिए पुलिस लाइन से रिवाल्वर रिसीव करने वाले एसआई 80 वर्ष के हो चुके हैं। उन्हें कुछ याद नहीं है।
घटना के दौरान के अभिलेख आमद एवं रवानगी जीडी से जुड़े रिकॉर्ड 2005 में ही नष्ट किए जा चुके हैं। ऐसे में पुलिस की इस उम्मीद पर भी पानी फिर गया। मामले में देहरादून से बुलंदशहर तक पत्राचार हुआ, लेकिन उसका नतीजा भी सिफर रहा। अब जांच अधिकारी की सिफारिश पर इस मामले में 23 साल बाद अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया है।
दरअसल, साल 1993 में एक मुठभेड़ के दौरान बरामद रिवॉल्वर को पुलिस लाइन के आर्म्स स्टोर में रखा गया था. 1999 में 789156 नंबर वाली रिवॉल्वर को जांच के लिए आगरा स्थित फॉरेंसिक साइन्स लेबोरेट्री भेजा गया. हैरत की बात यह है कि अभी तक यह रिवॉल्वर देहरादून वापस नहीं पहुंची. अब इस केस में जांच पड़ताल शुरू हुई है कि वह रिवॉल्वर आखिर है कहां!
रिवॉल्वर न तो आगरा लैब में मिली और न ही देहरादून में. अब पुलिस लाइन के आरआई जगदीश चंद्र पंत की तहरीर पर मुकदमा दर्ज हुआ है. पंत ने अपनी शिकायत में बताया कि 1993 में मुठभेड़ को लेकर धारा 307 के तहत थाना पटेलनगर में मुकदमा था. मुकदमे में .38 रिवॉल्वर भी बरामद की गई थी. आर्म्स स्टोर में रखी इस रिवॉल्वर को 1999 में बैलेस्टिक जांच के लिए दारोगा जसवीर सिंह के साथ आगरा लैब भेजा गया था, लेकिन तबसे आज तक इस रिवॉल्वर का कोई पता नहीं है.
पंत के मुताबिक 16 नवंबर 1999 से गायब रिवॉल्वर की खोजबीन 2020 में शुरू की गई थी. इससे पहले 2005 में पुलिस जीडी और अन्य रिकॉर्ड को निपटाया जा चुका था, लेकिन उस दौरान रिवॉल्वर का निस्तारण नहीं हुआ था. दून पुलिस ने मार्च 2020 में आगरा लैब को पत्र भेजा था तो लैब ने रिकॉर्ड न होने की जानकारी दी. कुल मिलाकर पुलिस ने अपनी लापरवाही छिपाने के लिए 23 साल तक इस मामले को दबाए रखा.
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