राज्य में आम चुनावों के चलते आगामी 12 मार्च तक आदर्श आचार संहिता प्रभावी है। अत्यधिक हैरानी की बात है कि इसी दौरान राज्य की आर्थिकी में योगदान के लिहाज से सबसे ज्यादा राजस्व देने वाले खनन विभाग के अधिकारीगण बड़ी तेजी से खनन विभाग की गतिविधियों को डिजिटलाईज करवाने संबंधी टेंडर को गुपचुप तरीके से निपटाने में अत्यधिक तेजी दिखा रहे हैं।
ज्ञात हो कि राज्य के माईनिंग विभाग द्वारा विगत 31 दिसम्बर को ‘‘माईनिंग डिजिटल ट्रांस्फॉरमेशन एण्ड सर्विलांस सिस्टम’’ – एमडीटीएसएस से संबंधित टेंडर निकाला गया। जिसकी अंतिम तिथि को दो बार बढ़ाया गया। वर्तमान में इसे 02 मार्च 2022 रखा गया है। राज्य की सरकारी टेंडर वेवसाईट पर निदेशक माईनिंग एस0एल0 पेट्रिक की ओर से जारी इस ऑनलाईन टेंडर की कुल राशि 40 करोड़ बताई गई है।
यूं तो आदर्श आचार संहिंता के नाम पर जनता को सीधी राहत देने वाले कई बेहद जरूरी विकास कार्यों को रोक कर रखा गया है, परंतु पहले से ही अपनी गतिविधियों के कारण सुर्खियों में रहने वाले खनन विभाग के अधिकारियों को इस टेंडर को करने की इतनी जल्दी है कि, आदर्श आचार संहिता के समाप्त हो जाने तथा नई सरकार के गठन हो जाने तक का इंतजार करना भी उन्हें गवारा नहीं हो रहा।
अत्याधुनिक सुविधाओं तथा तकनीक में माहिर सरकारी संस्थान चूंकि निविदा प्रक्रियाओं में प्रतिभाग नहीं करते अतः स्वाभाविक है कि माईनिंग संबंधित कार्यां के डिजिटल ट्रांस्फार्मेशन तथा निगरानी से संबंधित इस कार्य को निजी कम्पनियों के माध्यम से करवाने के लिए ही यह टेंडर आमंत्रित किया जा रहा है।
जिनमें सबसे बड़ा यह है कि खनन जैसे संवेदनशील विषय पर किसी निजी संस्था को तकनीकी दखल का अवसर दे कर वास्तव में सरकार का ही नियंत्रण इस प्रक्रिया की निगरानी से खत्म हो जाएगा।
डिजिटलाईजेशन जैसे तकनीकी विशेषज्ञता वाले क्षेत्र तथा निगरानी जैसे संवेदनशील मामाले को निजी संस्था के हवाले करना न सिर्फ राज्य की राजस्व कमाई को भारी नुकसान पहुंचाना होगा बल्कि निजी संस्था द्वारा निजी खनकों से मिली भगत कर उनको अरबों का लाभ पहुंचाए जा जा सकने के पूरे रास्ते खुल जाएंगे।
देश के कई अन्य राज्यों में इसीलिए इस बारे में निजी निविदाकर्ताओं हेतु टेंडर आज तक नहीं डाले हैं। या इस प्रक्रिया को रोक दिया गया है।
इसके अतिरिक्त निजी संस्था द्वारा इस कार्य के एनआईसी जैसे हितधारकों के साथ तालमेल तथा कार्य संपादन को लेकर भी बहुत संदेह हैं।
ऐसे में बहुत संभावना है कि निविदा के सफल हो जाने पर भी सफल निविदाकर्ता जो कि कोई ना कोई निजी संस्था ही होगी द्वारा राज्य को राज्स्व की भारी चोट पहुंचाई जा सकती है। या विभिन्न हित धारकों के साथ तालमेल ना बिठा पाने की सूरत में काम को आधा-अधूरा लटकाया जा सकता है। और सरकार को भारी आर्थिक नुकसान के साथ ही बदनामी भी दी जा सकती है।
सबसे पहला तो यह कि चुनाव आचार संहिंता के दौरान निजी कम्पनियों को लाभ देने की बदनामी से सरकार बच पाएगी।
इस क्षेत्र में (जी0आई0एस0, ड्रोन व सेटेलाईट इमेजनरी बेस्ड मैपिंग तथा डिजिटलाईजेशन) काम कर रही सरकारी संस्था किसी भी निजी संस्था से ज्यादा संसाधन सम्पन्न एवं तकनीकी रूप से दक्ष हैं। साथ ही सरकारी संस्थाएं इस प्रक्रिया में पहले से लगी एनआईसी तथा रिमोट सेंसिंग जैसे विभागों से बेहतर तालमेल कर सकती हैं। इस तालमेल की इस कार्य में अत्यधिक आवश्यकता है।
दूसरी ओर सरकारी संस्था द्वारा विकसित किए गए निगरानी सिस्टम में खनन विभाग, पुलिस तथा जिला प्रसाशन की संयुक्त कमेटी बना कर कर कार्य किया जाना है इसलिए पूरी प्रक्रिया पर पूरा नियंत्रण सरकार का ही रहेगा।
बेहतर निगरानी तथा डिजिटलाईजेशन के कारण स्वाभाविक तौर पर राज्य सरकार को राजस्व नुकसान से ना सिर्फ बचाया जा सकेगा बल्कि राजस्व कमाई निश्चित तौर पर बढ़ जाएगी क्योंकि राजकीय संस्था द्वारा उपलब्ध कराए गए डाटा से राजस्व वसूली उल्टा पहले से कहीं ज्यादा बढ़ाई जा सकती है।
राज्य सरकार द्वारा राज्य हित में तथा राजस्व लाभ के दृष्टिगत भी यह कार्य किसी प्रतिष्ठित सरकारी संस्था को नॉमिनेशन के आधार पर सीधे दिया जा सकता है।
अपुष्ट सूत्रों के अनुसार कतिपय सरकारी संस्थाएं इस कार्य हेतु अपनी अभिरूचि पूर्व में ही विभाग के मुखिया के समक्ष लिखित तौर पर प्रकट कर चुकी हैं। जो कि जी0आई0एस0, ए0आई0 (आर्टिफिसियल इंटिलिजेंस) तथा ड्रोन आधारित तकनीक से संबंधित कार्यों में विशेषक्षता हेतु जानी जाती हैं।
सरकार के पास क्या विकल्प है
राज्य की कमाई के प्रमुख स्रोत माने जाने वाले खनन जैसे संवेदनशील विभाग के इस टेंडर को तत्काल निरस्त कर किसी सरकारी संस्था को नॉमिनेशन के आधार पर यह कार्य आवंटित किया जाए।
यदि अभी तत्काल ही यह किया जाना बिल्कुल ही नामुमकिन हो तो भी सरकार को इस टेंडर की अंतिम तिथि को 02 मार्च से बढ़ा कम से कम 25 मार्च तक बढ़ाया जाना चाहिए ताकि नई सरकार की निगरानी में यह कार्य किया जा सके।
वैसे भी आदर्श आचार संहिता के दौरान कोई सरकारी विभाग इतने संवेदनशील टेंडर को कैसे आवंटित कर सकता है।
इस दौरान अभिरूचि प्रकट करने वाली सरकारी संस्थाओं की तकनीकी क्षमताओं तथा इस विषय हेतु सुझाए जा रहे समाधानों से संबंधित तकनीकी प्रस्तुतिकरण के लिए आमंत्रित करने हेतु पत्राचार किया जाना चाहिए। ताकि इस विषय पर निर्णय लेने के लिए संबंधित विभागीय समिति की और अच्छी व सुस्पष्ट समझ बन सके।
राज्य हित में सरकारी संस्थाओं के तकनीकी प्रस्तुतिकरण को देखने तथा इस विषय के सभी संवेदनशील पहलुओं पर पूरी तरह से आश्वस्त हुए बिना ही इस संवेदनशील कार्य को निजी हाथां में सौंपने की जल्दबाजी से जरूर बचा जाना चाहिए।
यदि फिर भी टेंडर समिति तथा इस विषय के विशेषज्ञों को लगता है कि निजी संस्थाओं के माध्यम से ही इस कार्य को कराया जाना चाहिए तो वह काम अब भी किया जा सकता है। इसलिए भी टेंडर की अंतिम तिथि को 02 मार्च से हर हाल में बढ़ा कर कम से कम 25 मार्च अवश्य किया जाना चाहिए।
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