नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे -4 की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड के प्राइवेट अस्पतालों में करीब 43 फीसदी प्रसव ऑपरेशन (सिजेरियन) करवाए जा रहे हैं। दरअसल, निजी अस्पतालों में सिजेरियन प्रसव के जरिए अधिक फीस वसूला जाना इसकी सबसे बड़ी वजह है। हेल्थ सर्वे के मुताबिक सरकारी अस्पतालों में 15 फीसदी मामलों में ही सिजेरियन डिलीवरी हो रही है। इसके अलावा आयरन और फॉलिक एसिड की गोलियां बांटने की योजना भी गर्भवती महिलाओं में एनीमिया खत्म नहीं कर पा रही। 46 फीसदी गर्भवती महिलाएं एनीमिया पीड़ित हैं।
बाल लिंगानुपात में 96 अंकों का सुधार: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की मिशन निदेशक सोनिका ने बताया कि राज्य ने बाल लिंगानुपात के मामले में बड़ी छलांग लगाई है। राज्य में बाल लिंगानुपात में 96 अंकों का सुधार हुआ है जिससे अब प्रति हजार बालकों पर 984 बेटियों का जन्म हो रहा है। उन्होंने कहा कि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे -4 की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में बाल लिंगानुपात की स्थिति प्रति एक हजार बालकों पर 888 बेटियों के जन्म की थी।
लेकिन अब नई रिपोर्ट में लिंगानुपात की स्थिति में काफी सुधार आया है। उन्होंने कहा कि राज्य में अस्पतालों में प्रसव की स्थिति में भी 21 प्रतिशत तक का सुधार हुआ है। उत्तराखंड में करीब 80 फीसदी महिलाओं के पास मोबाइल: उत्तराखंड में महिलाओं की आर्थिक स्थिति में भी काफी बेहतर सुधार हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में 60 फीसदी महिलाएं मोबाइल फोन प्रयोग कर रही हैं।
80 फीसदी अपना बैंक अकाउंट रखती हैं, 24 फीसदी महिलाओं के नाम पर जमीन या घर की संपत्ति है। इसके अलावा, राज्यभर में 21 फीसदी महिलाएं नौकरी कर रही हैं, पर इन्हें कैश में भुगतान किया जाता है। जबकि, 91 फीसदी महिलाओं का अपने घर में होने वाले निर्णय में योगदान रहता है। 15 फीसदी महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हैं।
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