प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा की है, इस मुद्दे पर गंभीर पुनर्विचार का खुलासा भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने हाल ही में संपन्न राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान किया था. बैठक के राजनीतिक प्रस्ताव में खेती से संबंधित खंड ने तीन कृषि कानूनों के किसी भी संदर्भ को पूरी तरह से छोड़ दिया था. यह नेतृत्व के भीतर इस मुद्दे पर गंभीर पुनर्विचार का एक प्रमुख संकेत था. इससे ही पता चलता है कि सरकार और संगठन दोनों में कृषि कानूनों को लेकर रणनीति बन गई थी और नेतृत्व ने भी इस पर ठोस कदम उठाना तय कर लिया था.
हालांकि इससे पहले फरवरी में पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक में पारित एक प्रस्ताव में तीन कृषि कानूनों को ‘किसानों के हित में’ के रूप में उचित ठहराया था, बल्कि उन्हें लागू करने के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की भी सराहना की थी. जनवरी में सरकार और आंदोलनकारी किसान संघों के बीच वार्ता टूटने के लगभग एक महीने बाद फरवरी का प्रस्ताव आया था. फरवरी के प्रस्ताव को प्रधानमंत्री की उपस्थिति में पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारियों द्वारा अपनाया गया था. इसके विपरीत संंगठन और सरकार ने कृषि कानूनों के विरोध पर मंथन किया, आपत्तियों को भी जांचा और परखा और नई रूपरेखा तैयार की गई. हालांकि इसके बारे मेंं पार्टी और सरकार ने अब तक कोई खुलासा नहीं किया था. अब पंजाब चुनावों में इस निर्णय से पार्टी को फायदा मिल सकता है.
वहीं, 7 नवंबर को हुई राष्ट्रीय कार्यकारी समिति द्वारा अपनाए गए प्रस्ताव में भी तीन कृषि कानूनों का जिक्र नहीं किया गया था, जबकि अन्य मुद्दों, फसलों की नई किस्मों की रिहाई, कृषि ऋण, पीएम-किसान, एफपीओ, किसान रेल आदि का उल्लेख किया गया था. नवंबर के प्रस्ताव के दौरान कृषि कानूनों के संदर्भ में इस चूक ने उत्तर प्रदेश और पंजाब के महत्वपूर्ण विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी के भीतर पुनर्विचार का संकेत दिया था. अब पार्टी और सरकार के प्रमुख कानूनों की वापसी पर पीएम मोदी की तारीफ कर रहे हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी मोदी की तारीफ की है.
भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी द्वारा अपनाए गए राजनीतिक प्रस्ताव के बारे में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, हमेशा विरोध करने वालों से बात करने के लिए तैयार हैं. केंद्रीय मंत्री, पार्टी पदाधिकारी और अन्य वरिष्ठ नेताओं ने इस बारे में कोई संकेत नहीं दिया था कि सरकार कृषि कानूनों को लेकर विचार कर रही है और इसे वापस लिया जा सकता है.
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