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उत्तराखंड हाईकोर्ट से मिली राज्य सरकार को राहत।


उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के जल विद्युत उत्पादन पर वाटर टैक्स लगाए जाने सम्बन्धी एक्ट को सही ठहराते हुए इसके खिलाफ कई हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट कम्पनियों की याचिकाओं को खारिज कर दिया है ।वर्ष 2016 में उच्च न्यायालय ने उक्त एक्ट के क्रियान्वयन में रोक लगाई थी । न्यायालय के इस आदेश से राज्य सरकार को राहत मिली है, लेकिन हाइड्रो पावर कम्पनियों और उत्तर प्रदेश विद्युत निगम ने इस आदेश के खिलाफ डबल बेंच में अपील करने का निर्णय लिया है । इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की एकलपीठ में पूर्व में ही पूरी हो चुकी थी, जबकि न्यायालय ने 12 फरवरी को ये महत्वपूर्ण फैसला सुनाया ।अधिवक्ता जितेंद्र चौधरी ने बताया कि मामले के अनुसार राज्य बनने के बाद उत्तराखण्ड सरकार ने राज्य की नदियों में जल विद्युत परियोजनाएं लगाए जाने के लिए कई कम्पनियों को आमंत्रित किया और उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश और जलविद्युत कम्पनियों के बीच करार हुआ । इसमें तय हुआ कि कुल उत्पादन की 12 प्रतिशत बिजली उत्तराखण्ड को निशुल्क दी जाएगी । जबकि शेष बिजली उत्तर प्रदेश को बेची जाएगी ।लेकिन वर्ष 2012 में उत्तराखंड सरकार ने उत्तराखण्ड वाटर टैक्स ऑन इलैक्ट्रिसिटी जनरेशन एक्ट बनाकर जल विद्युत कम्पनियों पर वायर की क्षमतानुसार 2 से 10 पैसा प्रति यूनिट वाटर टैक्स लगा दिया । जिसे अलकनन्दा पावर प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड, टी.एच.डी.सी., एन.एच.पी.सी., स्वाति पावर प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड, भिलंगना हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट, जय प्रकाश पावर वेंचर प्राइवेट लिमिटेड आदि ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी ।न्यायालय ने इन याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि विधायिका को इस तरह का एक्ट बनाने का अधिकार है । यह टैक्स पानी के उपयोग पर नहीं बल्कि पानी से विद्युत उत्पादन पर है, जो संवैधानिक दायरे के भीतर बनाया गया है । एकलपीठ ने याचिकाकर्ता कम्पनियों के पक्ष में 26 अप्रैल 2016 को जारी अंतरिम रिलीफ आर्डर को भी निरस्त कर दिया, जिसमें राज्य सरकार द्वारा इन कम्पनियों को विद्युत उत्पादन जलकर की करोड़ों रुपये के बकाए की वसूली के लिए नोटिस दिया था।

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