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कोरोना के चलते छोटे दलों के लिए चुनाव प्रचार बनी चुनौती।


उत्तराखंड में कोरोना संक्रमण तेजी से पैर पसार रहा है। पिछले कुछ दिनों से प्रतिदिन ढाई से तीन हजार नए मामले सामने आ रहे हैं। कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए चुनाव आयोग ने रैली, जनसभा, रोड शो जैसे आयोजनों पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। साथ ही चुनाव में वर्चुअल प्रचार पर ध्यान केंद्रित करने के निर्देश दिए हैं। इस कड़ी में उत्तराखंड में भाजपा, कांग्रेस व आम आदमी पार्टी जैसे दलों ने वर्चुअल प्रचार के लिए ताकत झोंकनी शुरू कर दी है, लेकिन इस दृष्टिकोण से उत्तराखंड क्रांति दल जैसे छोटे दलों के लिए सामने चुनौती कम नहीं होगी। वजह ये कि छोटे दलों के पास उस हिसाब से सांगठनिक ढांचा और संसाधन नहीं हैं, जैसे बड़े दलों के पास है।

उत्तराखंड में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां बारी-बारी राज करती आई हैं। दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों का प्रदेश में ठीकठाक सांगठनिक ढांचा है। इस दृष्टिकोण से देखें तो भाजपा का ढांचा अधिक सशक्त होने के साथ ही बूथ स्तर तक कार्यरत है। भाजपा की प्रांत से लेकर बूथ स्तर तक 14 हजार से ज्यादा इकाइयां हैं। यही नहीं, पार्टी ने इन सभी को वर्चुअल माध्यम से चुनाव प्रचार के मद्देनजर तैयार भी किया हुआ है। ऐसे में वह बदली परिस्थितियों में वर्चुअल चुनाव प्रचार के मामले में मनोवैज्ञानिक बढ़त ले सकती है। वर्चुअल प्रचार के लिए पार्टी ने तैयारियां भी शुरू कर दी हैं।

इसके साथ ही कांग्रेस का भी प्रांत से लेकर ब्लाक स्तर तक ढांचा है। अब वह बूथ स्तर तक अपने ढांचे पर फोकस कर रही है। आम आदमी पार्टी की बात करें तो उसका सांगठनिक ढांचा भाजपा व कांग्रेस जैसा नहीं है, लेकिन वह भी निरंतर वर्चुअल माध्यम से प्रचार में जुट गई है।इस परिदृश्य के बीच उत्तराखंड क्रांति दल जैसे छोटे दलों के लिए चुनौती बढ़ गई है।

विधानसभा चुनाव में हर बार ही 30 से 40 दल और संगठन चुनाव लड़ते हैं। ऐसे में उसके सामने वर्चुअल चुनाव प्रचार की चुनौती है, क्योंकि उनके पास न तो सशक्त सांगठनिक ढांचा है और न बड़े दलों के समान संसाधन ही। अब देखना होगा कि वे चुनाव प्रचार के लिए किस तरह की रणनीति अपनाते हैं।

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