कोविड की तीसरी लहर की प्रबल होती आशंका। चुनावी मौसम। मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा की अपील। कोविड प्रोटोकॉल… इन सबके बीच धड़ल्ले से चुनावी रैलियां हो रही हैं। पिछले एक माह में राजधानी देहरादून में ही तीन बड़ी रैलियां हो चुकी हैं। आशंका प्रबल होती जा रही है कि कुंभ की तरह कहीं प्रदेशभर में हो रहीं चुनावी रैलियां सुपर स्प्रेडर न बन जाएं।
पिछले एक माह की बात करें तो अकेले देहरादून में ही तीन बड़ी रैलियां परेड ग्राउंड में आयोजित की गई हैं। इनमें पहली रैली चार दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हुई थी, जिसमें भाजपा ने एक लाख लोगों को बुलाने का लक्ष्य रखा था। परेड मैदान खचाखच भरा था। दूसरी रैली, 16 दिसंबर को कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की हुई। इसमें भी मैदान में भारी भीड़ एकत्र हुई थी।
तीसरी रैली अब तीन जनवरी को दिल्ली के मुख्यमंत्री आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल की हुई है, जिसमें काफी भीड़ देखने को मिली थी। यह तीनों रैलियां इस ओर इशारा कर रही हैं कि कोविड से बचाव के इंतजाम करने में राजनीतिक दलों की कोई दिलचस्पी नहीं है। विशेषज्ञ इस बात की आशंका जता रहे हैं कि कहीं इस तरह की चुनावी रैली प्रदेश में कुंभ की तरह कोविड सुपर स्प्रेडर न बन जाएं।
केंद्र सरकार और उस आधार पर राज्य सरकार ने कोविड प्रोटोकॉल जारी किया हुआ है। इसके तहत, सबसे पहली शर्त सोशल डिस्टेंसिंग की है जो कि किसी भी चुनावी रैली में दूर-दूर तक नजर नहीं आती। दूसरा नियम मास्क पहनने का है, जो कि रैलियों में गायब नजर आया है। देखा गया कि मंच पर खड़े नेताओं के चेहरों से ही मास्क गायब थे। तीसरा नियम हाथों को धोने या सैनिटाइज करने का है, जिसके लिए किसी भी रैली में मौके पर सैनिटाइजर नजर नहीं आया। सवाल उठ रहे हैं कि यह कोविड प्रोटोकॉल सरकार ने किसके लिए बनाया है।
24 दिसंबर को देश के मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा देहरादून आए थे। उन्होंने सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की थी। जिसमें आयोग ने कोरोना महामारी की तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए राजनीतिक दलों को कोविड प्रोटोकॉल का पालन करने का आग्रह किया था। उन्होंने यह भी कहा था कि रोड शो के दौरान अधिकतम पांच वाहनों को ही अनुमति दी जाएगी। मुख्य चुनाव आयुक्त की इस अपील का अभी तक किसी भी राजनीतिक दल पर कोई असर नजर नहीं आ रहा है।
वैसे तो पूर्व में भाजपा सहित कुछ दलों ने वर्चुअल माध्यम से रैलियां शुरू कीं थीं लेकिन धीरे-धीरे यह परंपरा खत्म हो गई। दरअसल, नेता अपने-अपने क्षेत्र में भीड़ को इकट्ठा करते थे। उनके लिए ऑनलाइन भाषण सुनने की व्यवस्था कराई जाती थी। पार्टी का नेता अपने आवास से उन्हें ऑनलाइन संबोधित करता था। इसे इसलिए भी नाकाफी माना गया क्योंकि इसमें नेता तो सुरक्षित हो रहे थे लेकिन जनता नहीं। अब एक बार फिर वर्चुअल माध्यमों से चुनावी रैलियों की मांग पुरजोर होने लगी है।
चुनाव आयोग से मांग, तत्काल लगे रैलियों पर रोक
तेजी से प्रदेश में बढ़ रहे कोरोना मामलों के बीच अब चुनाव आयोग के सामने रैलियों पर रोक लगाने की मांग भी उठने लगी है। एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक और कोरोना महामारी से जुड़े तथ्यों के विश्लेषक अनूप नौटियाल ने चुनाव आयोग को ट्वीट किया। उन्होंने कहा कि अरविंद केजरीवाल के कोविड पॉजिटिव आने के साथ ही यह आशंका प्रबल होने लगी है कि यह रैलियां सुपर स्प्रेडर साबित हो सकती हैं। लिहाजा, चुनाव आयोग इस तरह की सभी चुनावी रैलियों पर प्रतिबंध लगाए। इसके बजाए जनता तक पहुंचने के अन्य माध्यमों का प्रयोग का रास्ता खोला जाए।
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